अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में लगभग 100 पदक आपके पहलवान शिष्यों ने जीते हैं। आपके अखाड़े से ही ओलिंपियन पहलवान और अनेकों शिष्य वर्ल्ड रेसलिंग चैंपियनशिप, एशियन गेम्स, वर्ल्ड जूनियर रेसलिंग एवं राष्ट्रमंडल खेलों में अपना सिक्का जमा चुके हैं। आपके शिष्य रमेश कुमार ने 2009 में विश्व कुश्ती मैं ताम्र पदक जीता था। कुश्ती के प्रति आपकी खेल भावना को देखते हुए आपको दिल्ली कुश्ती संघ का अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन आपने शीघ्र ही इससे मुक्ति पा ली। आपका तो एक ही धर्म है -कुश्ती सिखाना। आप धर्म मजहब, जात-पात की भावना से मुक्त हैं। आपके अखाड़े की मिट्टी में इन्सानों का पसीना मिलता है किसी धर्म या जाति का नहीं। निरन्तर साधना से आप स्थितप्रज्ञ भाव से देश की मिट्टी से स्वर्णतुल्य सपूत गढ़ रहे थे। आपके द्वारा प्रशिक्षित पहलवानों में से लगभग 3000 पहलवान देश के विभिन्न विभागों में विभिन्न पदों को सुशोभित कर रहे हैं। कुछ शिष्यों ने तो आपके मार्गदर्शन में कुश्ती साधना के लिये अखाड़े स्थापित कर पहलवानों को प्रशिक्षण देन प्रारम्भ किया है। जीवन में 80 वर्ष की आयु तक आपने मौन साधक के रूप में अपने कुश्ती क्षेत्र में स्वर्णाक्षरों में नाम अंकित करवाया। परिवार में आपकी पाँच सन्तानों में से आपने चार का बिछोह अपने जीवनकाल में देखा l दुःख असीम था परन्तु आपके लिये कुश्ती सीख रहा हर बालक आपकी सन्तान था। आप अपनी पीड़ा मूलरूप से अपने खून पसीने से पौधसिंचित करते रहे। उपाधियां, पुरस्कार, खिताब आपकी कर्मसाधना के सदैव गौण रहे। भारत सरकार की राष्ट्रपति महोदया श्रीमती प्रतिभा पाटिल सिंह ने सन् 2009 में आपको द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित किया। 87 वर्ष की आयु में दिनांक 2 मई 2017 को आपने अपने शरीर से अन्तिम सांस ली। आपके गोलोक गमन समय हजारों सन्तानों ने जिन्हें आपने पिताव्रत स्नेह दिया था, अश्रुपूरित सजल नेत्रों से आपको विदाई दी। कैप्टन चाँदरूप आज हमारे मध्य नहीं हैं परन्तु उनकी साधना से कुश्ती जगत में प्रज्जवलित प्रकाशपुंज सदैव सभी को राह दिखलायेगा।