दुनिया में चन्द लोग ही ऐसे होते हैं जो अपने जीवन काल में ही महान हो जाते हैं और उनकी उपलब्धियां एवं उनके द्वारा स्थापित जीवन मूल्य चिरकाल तक मील पत्थर बन आने वाली पीढ़ियों का पथ प्रदर्शन करते रहते हैं और प्रेरणा बने रहते हैं। ऐसे ही थे हम सभी के आदरणीय “साहब जी" गुरू कैप्टन चाँदरूपजी जिनका नाम मल्ल विद्या का पर्याय था। अपने समकालीन उस्तादों, खलीफाओं और कुश्ती गुरूओं में लोकप्रिय कैप्टन चांदरूप आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी पहलवानों के मानस पर एक ठेठ प्रशिक्षक और सख्त पिता की तरह अंकित है। जीवन पर्यन्त कुश्ती के प्रति साधना, अखाड़ा पद्धति के प्रति समर्पण और अपने शिष्यों की सन्तानवत देखरेख उनके व्यक्तित्व को सम्पूर्ण परिभाषित करती है। भारतीय मल्ल विद्या को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में मान्यता दिलाने और उसे आधुनिक स्वरूप प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कैप्टन चाँदरूप का जन्म 1930 में हुआ। हरियाणा के रोहतक जिले के गाँव सुण्डाणा में जन्मे कैप्टन चाँदरूप आठ भाई-बहन थे। बड़ा होने के कारण बचपन से ही उन पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई। इससे वह घबराए नहीं। बचपन से ही कुश्ती के प्रति उनकी रुचि थी। इसके कारण ही उन्होंने रोहतक के जाट स्कूल में प्रवेश लिया। उन्हें स्कूल जाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता था। लेकिन बचपन से ही उन्होंने यह बात गाँठ बांध ली थी कि जीवन में कुछ कर दिखाना है तो संघर्ष करना पड़ेगा। पारिवारिक दायित्व, संघर्ष तथा देश सेवा की भावना ने आपको भारतीय सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित किया। सेना में भर्ती होने के बाद कुश्ती के लिए उनका शौक परवान चढ़ा। देखते ही देखते आप अपनी लगन और मेहनत के बूते सेना के चोटी के पहलवान बन गएl

कुश्ती के साथ-साथ आप दुश्मन से लोहा लेने से भी कभी पीछे नहीं हटे। 1962 के भारत-चीन युद्ध तथा 1965 के भारत-पाक युद्ध में आप अग्रिम मोर्चों पर लड़े। कुश्ती के प्रति आपकी निष्ठा, लगन और समर्पण को देखते हुए भारतीय सेना ने उन्हें राष्ट्रीय खेल संस्थान (एन.आई.एस.) में प्रशिक्षक (कोच) के प्रशिक्षण हेतु भेजा। उस समय यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। भारतीय सेना में आपको कुश्ती कोच मुख्य प्रशिक्षक (चीफ कोच) पद का दायित्व सौंपा गया। आपके मार्ग दर्शन और देख-रेख में श्री नेत्रपाल तथा श्री विजय कुमार बाल्मीकि ने 'भारत केसरी' के खिताब जीते। श्री विजय कुमार बाल्मीकि ने तो एक साथ 'भारत केसरी' और 'भारत कुमार' खिताब जीत कर अपने गुरु कैप्टन चाँदरूप का नाम रोशन किया। श्री नेत्रपाल ने एशियाई खेलों में ताम्र पदक जीत कर अपने गुरु और देश का मान बढ़ाया।

जुलाई, 1979 में आप भारतीय सेना से सेवा मुक्त हुए लेकिन कुश्ती से आपका सम्बंध और गहरा हो गया। आपने दिल्ली में आजादपुर में 'वैदिक व्यायामशाला' की स्थापना की। यह अखाड़ा कुछ समय में ही अपनी उपलब्धियों के कारण कैप्टन चाँदरूप के अखाड़े के नाम से मशहूर हो गया। 'वैदिक व्यायामशाला' देश में कुश्ती परम्परा को समृद्ध बनाने में आज भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। कैप्टन चाँदरूप के शिष्यों की गौरवशाली परम्परा है। अनेक अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवान, 5 'अर्जुन पुरस्कार' विजेता, 12 भारत केसरी, एशियाई खेलों में 15 पदक, राष्ट्रमंडल खेलों में 10 पदक, दक्षिण एशियाई खेलों में 20, अन्य